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कविता

राग भटियाली

कुमार मंगलम


एक अराजकता का अनुशासन है
राग भटियाली
बाउल अपने जानिब अराजक हैं
और उसका अनुशासन है
राग भटियाली
कि उसके अनुशासन में आबद्ध
राग के अंतिम बंधन को खुला छोड़ देते हैं
बिल्कुल जीवन की तरह

जीवन का प्रमेय
बनता है तुम्हारे होने से
अब तुम नहीं हो तो भी जीवन है
लेकिन भटियाली की तरह ही अंतिम स्वर खुला हुआ

जीवन में झगड़े हैं
जी का जंजाल है
प्रेम भी है
उपहास है, मनुहार है
लय है, गति है, स्वर भी है
यह मिल कर एक राग को बनाते हैं
लेकिन जब जीवन आवारा हो जाता है
तो उसके स्वर खुल जाते हैं
प्रकृति में स्वतंत्र विचरते हैं

जीवन राग भटियाली है
और तुम बाउल
हमारे संबंध में कोई अनुशासन नहीं था
तुम स्वतंत्र थी
और मैं थोड़ा बँधा हुआ

कहते हैं भटियाली और बाउल गान के बीच
की जगह लोहे पर कान रख ही
जाना जा सकता है
तुमको कैसे भी नहीं जाना जा सकता

अब तुम आजाद हो
चाहे जो करो
मैं भी आजाद हूँ
चाहे जो करूँ
पर जीवन का एक अनुशासन है
और अब मैं जीवन में नहीं हूँ

राग भटियाली और बाउल-गान के बीच
कहीं बँधा, कहीं खुला
बीच में कहीं हूँ
पर कोई खबर नहीं कहाँ हूँ

तुम्हें बाउलों के बारे में बहुत खबर है न
और संगीत भी जानती हो
मेरा पता मिले तो बताना
तुम्हें तो मेरा ठिकाना पता है न


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